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महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़, कर्नाटक में कांबाला और तमिलनाडु में जल्लीकट्टू जारी रहेगा, तमिलनाडु के कानून को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा

The Fact India: महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़, कर्नाटक में कांबाला और तमिलनाडु में जल्लीकट्टू जारी रहेगा। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने पशु क्रूरता अधिनियम में तमिलनाडु सरकार की ओर से किए गए संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। पशु क्रूरता अधिनियम में बदलावों की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अदालत ने याचिकाएं खारिज कर दीं। 2014 में जल्लीकट्टू और अन्य राज्यों में इसी तरह के दूसरें खेलों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने कानून में यह बदलाव कर इसे सांस्कृतिक विरासत घोषित कर दिया। इस मामले पर जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुरुवार को कहा कि कानून में बदलाव 2014 में नागराज केस में दिए गए फैसले के खिलाफ नहीं हैं। उस केस में कानून के जो खराब पहलू थे, वह बदलावों के बाद हट गए। इन बदलावों के चलते वास्तव में पशुओं को होने वाला दर्द और यातना कम हुई है। इन बदलावों को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिली थी। इसमें भी गलती नहीं हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम इस बात से आश्वस्त हैं कि पिछली एक सदी से तमिलनाडु में जल्लीकट्टू होता आ रहा है। क्या तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत में इसे शामिल किए जाने पर और ज्यादा विस्तार से चर्चा की जरूरत है? हम यह नहीं कर सकते हैं। जब विधानसभा ने यह घोषित कर दिया कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत है, तब हम इस पर कोई अलग नजरिया नहीं रख सकते हैं। इस पर फैसला करने के लिए विधानसभा ही सबसे अच्छी जगह है।
पिछली सुनवाई में तमिलनाडु सरकार ने हलफनामे में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का काम नहीं है, बल्कि महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला कार्यक्रम है। इस खेल में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती है। राज्य सरकार ने कहा कि पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देश भी बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। इसके अलावा सरकार ने तर्क दिया कि जल्लीकट्टू में शामिल सांडों को साल भर किसान ट्रेनिंग देते हैं ताकि कोई खतरा न हो। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पशु कल्याण विभाग और ए नागराज के केस में जल्लीकट्टू पर बैन लगाया था। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने कानून में संशोधन किया।
