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“आदिवासी समाज की अस्मिता, स्वायत्तता एवं संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व 'उलगुलान' के प्रणेता धरती आम्बा भगवान बिरसा मुण्डा जी की शहादत दिवस पर जमन जोहार।”
यह शब्द न केवल श्रद्धांजलि हैं, बल्कि एक सामाजिक और राजनीतिक संकल्प का प्रतीक भी हैं, जिन्हें राजस्थान के डूंगरपुर से सांसद राजकुमार रोत ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर साझा किया।
राजकुमार रोत के इस पोस्ट ने एक बार फिर आदिवासी चेतना, उनके अधिकारों और गौरवमयी इतिहास की ओर समाज का ध्यान खींचा है। यह सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं थी, बल्कि एक राजनीतिक व सामाजिक चेतावनी भी थी—कि इतिहास को सिर्फ किताबों में नहीं, जमीन पर भी जिंदा रहना चाहिए।
🌿 बिरसा मुंडा: जनजागरण और उलगुलान के प्रतीक
बिरसा मुंडा का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐसा अध्याय है, जो आदिवासी समाज की पहचान, संघर्ष और बलिदान को जीवंत करता है। 15 नवंबर 1875 को झारखंड में जन्मे बिरसा ने कम उम्र में ही ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका।
“उलगुलान” यानी विद्रोह—यह केवल ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ युद्ध नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक क्रांति थी। उनका आंदोलन वनभूमि, जल-जंगल और जमीन की रक्षा के साथ-साथ आदिवासी समाज की पहचान को बचाने की लड़ाई थी।
9 जून 1900 को रांची जेल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे मात्र 25 वर्ष के थे, लेकिन उनकी शहादत ने आने वाली पीढ़ियों को स्वाभिमान और संघर्ष का रास्ता दिखाया।
🏹 राजकुमार रोत: धरती आबा की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए
राजकुमार रोत स्वयं आदिवासी समाज से आते हैं और उनके राजनीतिक जीवन का केंद्रबिंदु भी आदिवासी अधिकार, संस्कृति और स्वायत्तता की रक्षा रहा है। बिरसा मुंडा की जयंती और शहादत दिवस हो या कोई भी आदिवासी पर्व—राजकुमार रोत हमेशा सामने आकर नेतृत्व करते रहे हैं।
उनकी इस वर्ष की श्रद्धांजलि पोस्ट में "अस्मिता, स्वायत्तता एवं संस्कृति की रक्षा" पर विशेष ज़ोर देना यह दर्शाता है कि वे सिर्फ आदिवासी समाज के प्रतीकात्मक प्रतिनिधि नहीं हैं, बल्कि नीतिगत और वैचारिक योद्धा हैं।
📌 राजकुमार रोत का राजनीतिक और सामाजिक योगदान
राजकुमार रोत ने संसद में कई बार आदिवासी समाज से जुड़े मुद्दे उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- वन अधिकार कानून को सही तरीके से लागू करने की मांग
- आदिवासी भाषा और संस्कृति को शिक्षा में स्थान देने की पहल
- भूमि अधिग्रहण मामलों में पारदर्शिता और आदिवासियों की सहमति की अनिवार्यता
- आरक्षण के अधिकारों की रक्षा और विस्तार
उन्होंने राजस्थान के वागड़ क्षेत्र में कई ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने के लिए पहल की, ताकि स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की आदिवासी परंपरा को मजबूती मिल सके।
🌾 धरती आबा की विरासत और आज की चुनौतियाँ
आज जबकि देश विकास की दौड़ में कई बार पारंपरिक समुदायों को पीछे छोड़ देता है, ऐसे में बिरसा मुंडा जैसे नायकों की स्मृति हमें यह याद दिलाती है कि विकास की अवधारणा समावेशी होनी चाहिए।
राजकुमार रोत जैसे युवा सांसद इसी सोच को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने न केवल बिरसा मुंडा को याद किया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि आदिवासी समाज की संस्कृति, भाषा और परंपरा को मिटाने की किसी भी कोशिश का डटकर विरोध किया जाएगा।
🔥 ‘जमन जोहार’ का अर्थ सिर्फ अभिवादन नहीं, चेतावनी भी है
राजकुमार रोत की पोस्ट का समापन “जमन जोहार” से हुआ, जो आदिवासी परंपरा में सम्मान और गर्व का प्रतीक है। परंतु इस शब्द का प्रयोग यहां केवल सांस्कृतिक नहीं, एक क्रांतिकारी भाव के साथ किया गया है—यह धरती के बेटों की चेतावनी है कि वे अपनी जड़ों से समझौता नहीं करेंगे।
✊ नव आदिवासी राजनीति का चेहरा
बिरसा मुंडा की स्मृति में की गई यह पोस्ट बताती है कि राजकुमार रोत केवल सांसद नहीं, बल्कि एक विचारधारा के संवाहक हैं। उनका नेतृत्व युवा आदिवासियों को प्रेरित करता है कि वे राजनीति में आएं, नीति निर्माण में भाग लें और अपनी संस्कृति की रक्षा स्वयं करें।
वे यह मानते हैं कि आदिवासी समाज को अब "वोट बैंक" नहीं, नीति निर्माता बनना होगा। और यही सोच उन्हें अलग बनाती है।
