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JAIPUR : नफरत के बाजार में सियासत की दुकानें फिर सज गई हैं! उपचुनाव का मौसम है, और सियासतदानों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है, लेकिन क्या ये मुस्कान लोकतंत्र की पवित्रता को बनाए रख पाएगी? चुनाव आयोग के सख्त रुख के बावजूद क्या सियासत का रंग पीला हो जाएगा?
राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का बिगुल बजने ही वाला है। सियासी गलियारों में हलचलें तेज हो गई हैं, लेकिन इस बार चुनावी मैदान सिर्फ प्रचार का नहीं है, बल्कि आचार संहिता के उल्लंघन और डिजिटल प्रचार के ‘अंधे खेल’ का भी है। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को चेतावनी दी है कि चुनावी मर्यादा की सीमाओं का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
चुनाव आयोग का साफ कहना है कि सोशल मीडिया, मोबाइल फोन और डिजिटल मीडिया के जरिए किसी भी प्रकार के बिना प्रमाणित विज्ञापन, नफरती बयान या भड़काऊ कंटेंट बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवीन महाजन ने इस मामले पर दो टूक कहा है कि ऐसे उल्लंघनों में दोषी पाए जाने पर न केवल उम्मीदवार, बल्कि टेलीकॉम कंपनियां और मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी शिकंजा कसा जाएगा।
पुलिस विभाग भी इस बार संचार व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए जुटा हुआ है। पुलिस हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं ताकि सोशल मीडिया पर आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतें तुरंत दर्ज की जा सकें। डीजीपी अनिल पालीवाल ने इस बात की पुष्टि की है कि सभी संचार विहीन क्षेत्रों में पुलिस वायरलेस नेटवर्क के जरिए बाधारहित व्यवस्था बनाए रखेगी।
लेकिन सवाल वही है—क्या ये सख्तियां वाकई राजनीति की गंदगी को साफ कर पाएंगी? या फिर सियासत का ये पीला चेहरा हर बार की तरह हमें सिर्फ अंधेरे में ही रखेगा? सवाल बड़ा है, और जवाब... शायद कहीं गुम हो गया है!