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“हर भाषा भारत की राष्ट्रीय भाषा है”: शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का बड़ा बयान


केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने देश की शिक्षा नीति के बारे में बात करते हुए कहा, "शिक्षा परिणाम-केंद्रित होनी चाहिए. ताकि यह रोजगार सृजन में योगदान दे सके."
इसके अलावा उन्होंने कहा, "हमें अंग्रेजी भाषा पर निर्भरता छोड़ देनी चाहिए. हमें मातृभाषा पर अधिक ध्यान देना चाहिए. पहली से पांचवीं कक्षा तक दो भाषाएं सीखें. आपकी मातृभाषा उन दो भाषाओं में से एक होनी चाहिए, और दूसरी आप चुन सकते हैं." उन्होंने कहा कि शिक्षा क्षेत्र में नई परियोजनाएं और विचार प्रस्तुत किए गए.
हर भाषा भारत की राष्ट्रीय भाषा- शिक्षा मंत्री
धर्मेंद्र प्रधान ने भाषा को लेकर चल रही बहस पर विराम लगाते हुए कहा, "राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन भाषाओं का विकल्प दिया गया है. भारत के अधिकांश राज्यों में तीन भाषाएं बोली जाती हैं. तमिलनाडु में भी छात्रों को तीन भाषाएं पढ़ाई जाती हैं. हर भाषा भारत की राष्ट्रीय भाषा है."
हिंदी थोपने के तमिलनाडु के CM के आरोपों पर क्या बोले शिक्षा मंत्री?
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि इस बार राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुत स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी भाषा को किसी भी राज्य के बच्चों के ऊपर थोपा नहीं जाएगा. थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला पहले भी था और अभी भी है. तमिलनाडु को छोड़कर इस विषय पर किसी राज्य में प्रश्नचिन्ह नहीं है. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के स्टेट बोर्ड के स्कूलों में तीन भाषाएं पढ़ाई जाती हैं. यहां तीसरे लैंग्वेज के तौर पर लोग ऊर्दू, तेलुगु और कई लोग हिंदी भी सीखते हैं. सीएम एमके स्टालिन की सोच में दिक्कत है.
स्कूल बोर्ड के साल में 2 बार एग्जाम को सरकार कैसे मैनेज करेगी?
केंद्रीय मंत्री ने इस पैटर्न के फायदे गिनाते हुए कहा कि दसवीं कक्षा में सालभर में दो बार बोर्ड एग्जाम करने का मकसद विद्यार्थियों को ही सुविधा प्रदान करना है. पहले एग्जाम में उन्हें अपनी गलतियों का पता चलेगा और दूसरी बार में वे ज्यादा बेहतर कर पाएंगे. उन्होंने अपनी बात के समर्थन में JEE एग्जाम का उदाहरण दिया.
