Categories
Vote / Poll
BJP और Congress के बीच क्या Rajasthan में Aam Aadmi Party अपनी जगह बना पाएगी ?
Vote / Poll
डेगाना विधानसभा क्षेत्र से आप किसको भाजपा का जिताऊँ प्रत्याशी मानते है ?
Vote / Poll
कर्नाटक का मुख्यमंत्री किसे बनाया जा सकता है?
Vote / Poll
फिल्मों के विवादित होने के क्या कारण हैं?
Recent Posts
Newsletter
Subscribe to our mailing list to get the new updates!
Recommended Posts
Featured Posts
जजों के तबादले और नियुक्ति में सुस्ती पर शीर्ष कोर्ट नाराज, केंद्र के लिए 'पिक एंड चूज' का जिक्र
उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के तबादले में सुस्ती को लेकर अहम टिप्पणी की। अदालत ने कॉलेजियम की सिफारिशों को मंजूरी देने में केंद्र पर लगे "पिक एंड चूज" के मुद्दे को उठाया। सोमवार को मुकदमे की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, यह अच्छा संकेत नहीं देता है। अदालत ने कहा कि कॉलेजियम ने स्थानांतरण के लिए न्यायाधीशों के जिन 11 नामों की सिफारिश की थी, उनमें से पांच का स्थानांतरण हो चुका है, लेकिन छह अभी भी लंबित हैं। जिनका तबादला होना है उसमें गुजरात, इलाहाबाद और दिल्ली हाईकोर्ट के जज शामिल हैं।
नियुक्ति प्रक्रिया में सुस्ती पर नाराजगी प्रकट करते हुए जस्टिस कौल ने कहा, पिछली बार भी मैंने कहा था कि यह अच्छे संकेत नहीं हैं। बता दें कि न्यायमूर्ति कौल शीर्ष अदालत की उस कॉलेजियम के सदस्य भी हैं जिसने जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश की है। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस कौल ने कहा, यह स्वीकार्य नहीं है। पिछली बार भी, मैंने इस बात पर जोर दिया था कि चयनात्मक स्थानांतरण (selective transfers) न करें। इससे विशिष्ट हालात में कुछ व्यक्तियों के साथ किए जा रहे व्यवहार को लेकर सवाल खड़े होते हैं।"
'पिक एंड चूज' पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या संकेत भेज रहे हैं?
अदालत ने कहा कि सरकार जजों के तबादलों के लिए कॉलेजियम की तरफ से अनुशंसित नामों के संबंध में "पिक एंड चूज़" नीति का पालन कर रही है। पीठ ने कहा, "बस इसे देखें कि आप क्या संकेत भेज रहे हैं?" बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की खंडपीठ दो याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई कर रही थी। इनमें से एक याचिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम की तरफ से अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से देरी का आरोप लगाया गया था।
चयनात्मक नियुक्तियों से परेशानी खड़ी होती है
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि समस्या तब पैदा होती है जब चयनात्मक नियुक्ति होती है। इससे लोग अपनी वरिष्ठता खो देते हैं। अदालत ने पूछा, "लोग जज बनने के लिए क्यों सहमत होंगे?" पीठ ने कहा, यदि किसी उम्मीदवार को यह नहीं पता कि न्यायाधीश के रूप में उसकी वरिष्ठता क्या होगी, तो अन्य योग्य उम्मीदवारों को राजी करना मुश्किल हो जाता है।
एक नाम को मंजूरी नहीं तो बाकी को क्यों रोकना?
जस्टिस कौल की पीठ ने कहा, कॉलेजियम की तरफ से की गई कुछ पुरानी सिफारिशों में वे नाम शामिल हैं जिन्हें या तो एक या दो बार दोहराया जा चुका है। पीठ ने कहा, हालात ऐसे नहीं हो सकते हैं कि अगर सरकार कॉलेजियम की तरफ से अनुशंसित नामों में से एक नाम को मंजूरी नहीं देती है तो अन्य नामों को भी रोक दिया जाए।
पांच दिसंबर को अगली सुनवाई
अदालत ने कहा, जुलाई में तीन नामों की सिफारिश की गई थी, जब इनपुट के साथ कॉलेजियम को नाम वापस भेजने की अपेक्षित समयसीमा समाप्त हो गई थी। इस पर केंद्र सरकार की तरफ से पेश वकील वेंकटरमणी ने कहा कि जहां तक दोहराए गए नामों का सवाल है, प्रगति हुई है। उन्होंने पीठ से मामले की सुनवाई एक सप्ताह या 10 दिन बाद करने का अनुरोध किया और कहा कि कई चीजें साफ हो रही हैं। दलीलों को सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को तय की। सुनवाई के दौरान, पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से संबंधित एक मुद्दे का भी जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन दो वरिष्ठ व्यक्तियों के नामों की सिफारिश की गई थी, उन्हें अभी तक नियुक्त नहीं किया गया है।
अनुशंसित नाम लंबे समय तक लंबित रहने से सुप्रीम कोर्ट चिंतित
इससे पहले बीते 7 नवंबर को मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह "परेशान करने वाली" बात है कि केंद्र उन न्यायाधीशों को चुनिंदा (selective) तरीके से चुन और नियुक्त कर रहा है। इनके नामों की सिफारिश कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में नियुक्तियों के लिए की थी। उच्च न्यायालयों में तबादलों के लिए अनुशंसित नामों के लंबे समय तक लंबित रहने पर भी सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की थी।
किन याचिकाओं पर सुनवाई, अप्रैल, 2021 के आदेश में क्या?
गौरतलब है कि जजों की नियुक्ति मामले में शीर्ष अदालत कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु ने भी अपील की है। इसमें 2021 के फैसले में अदालत की तरफ से निर्धारित समय-सीमा का पालन नहीं करने का आरोप लगाया गया है। याचिका में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग भी की गई है। एक अन्य याचिका में न्यायाधीशों की समय पर नियुक्ति के संबंध में 20 अप्रैल, 2021 को पारित आदेश में निर्धारित समय-सीमा का "जानबूझकर उल्लंघन" करने का आरोप लगा है। 20 अप्रैल, 2021 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अगर कॉलेजियम सर्वसम्मति से अपनी सिफारिशें दोहराता है, तो इस परिस्थिति में केंद्र को तीन-चार सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने
बता दें कि कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच 'टकराव' का प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है। खुद पूर्व कानून मंत्री रिजिजू इस सिस्टम में सुधार को लेकर बयान दे चुके हैं। विभिन्न क्षेत्रों की आलोचना के बीच चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कॉलेजियम सिस्टम को वर्तमान समय का सबसे बेहतर विकल्प बता चुके हैं।