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Vote / Poll

BJP और Congress के बीच क्या Rajasthan में Aam Aadmi Party अपनी जगह बना पाएगी ?

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अब जनता कांग्रेस-भाजपा से परेशान हो चुकी है
30%
'आप' की वजह से कांग्रेस और भाजपा में चिंता है
9%
केजरीवाल राजस्थान में कामयाब नहीं हो पाएंगे
90%
राजस्थान में भी 'आप' की सरकार बननी चाहिए
70%
Total count : 138

Vote / Poll

डेगाना विधानसभा क्षेत्र से आप किसको भाजपा का जिताऊँ प्रत्याशी मानते है ?

अजय सिंह किलक
56%
शिव देशवाल
26%
अन्य
18%
Total count : 7524

Vote / Poll

कर्नाटक का मुख्यमंत्री किसे बनाया जा सकता है?

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सिद्देरमैया
67%
डीके शिवकुमार
13%
मल्लिकार्जुन खड़गे
13%
बता नहीं सकते
7%
Total count : 15

Vote / Poll

फिल्मों के विवादित होने के क्या कारण हैं?

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समुदाय विशेष को टारगेट करना
33%
राजनीतिक लाभ लेने के लिए
11%
फिल्मों को हिट करने के लिए
44%
कुछ बता नहीं सकते
11%
Total count : 9

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चर्चा में (Supreme Court) : क्या अब विपक्ष सिर्फ न्यायपालिका के ही भरोसे

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The Fact India : चुनाव आयोग शुरू से ही स्वतंत्र निकाय के तौर पर काम करता आया है | ये बात अलग है कि मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन ने चुनाव आयोग को विशेष पहचान दिलायी और कुछ दिन पहले ही Supreme Court  सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान शेषन को पूरे सम्मान के साथ याद किया गया था |

चुनाव आयुक्तों को लेकर भी विपक्ष केंद्र सरकार को कठघरे में वैसे ही खड़ा करता रहा है, जैसे सीबीआई या दूसरी जांच एजेंसियों को लेकर और अब तो सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश आ गया है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां भी वैसे ही होंगी जैसे सीबीआई निदेशक की होती है |अब नियुक्ति के लिए एक कमेटी होगी जिसमें प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के अलावा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी होंगे |

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देखा जाये तो ये उस नैरेटिव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का प्रहार है जिसमें देश की तात्कालिक सरकार पर विपक्ष की तरफ से सबसे बड़ी अदालत को प्रभावित करने की तोहमत जड़ी जाती रही है | यह फैसला ऐसे दौर में आया है जब सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं को एक खास विचारधारा थोप कर बर्बाद करने का इल्जाम लगाया जा रहा है |

(Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग तो न्यायपालिका में नियुक्तियों जैसा ही कोई कॉलेजियम सिस्टम बनाने की रही, लेकिन अदालत को वो शायद ठीक नहीं लगा | (Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम सिस्टम जैसी तो नहीं दी है, लेकिन केंद्र सरकार की भूमिका सीमित जरूर कर दी है |

जजों की नियुक्ति के मामलें हाल फिलहाल न्यायपालिका और विधायिका के बीच एक टकराव जैसी स्थिति को भी महसूस किया जाने लगा था, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखायी तो सरकार ने कदम पीछे खींचते हुए कॉलेजियम की सिफारिशें मान भी ली |

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नियुक्तियों से पहले कुछ राजनीतिक हलचलों पर ध्यान दें तो सब कुछ साफ साफ समझ में आता है | इसके लिए उपराष्ट्रपति और राज्य सभा में सभापति जगदीप धनखड़ की टिप्पणी, कानून मंत्री किरण रिजिजु के तब के बयानों के अलावा, सोनिया गांधी का बयान और बीजेपी सांसद वरुण गांधी का इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेख भी सभी के संज्ञान में है |

और उसी क्रम में देखें तो (Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट ने अदानी-हिंडनबर्ग केस में भी जांच के लिए कमेटी बनाने का आदेश दिया है | जिस तरीके से मोदी सरकार अदानी-हिंडनबर्ग केस में विपक्ष के जांच की मांग को खारिज करती रही है, विपक्षी खेमे में तो खुशी की लहर होनी ही चाहिये | देश की सबसे पुरानी और बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को तो कम से कम इस बात के लिए खुश होना ही चाहिये कि एक याचिका पर सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट ने वो काम कर दिया है |

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि चुनाव आयोग को लेकर आये (Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वास्तव में कोई फर्क पड़ेगा भी क्या ? क्योंकि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में नयी व्यवस्था देने वाले (Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट ने ही एक बार सीबीआई को ‘पिंजरे के तोता’ भी तो बताया था !

अदानी-हिंडनबर्ग केस में Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी बनाने का आदेश जारी किया है और SEBI को हिदायत दी है कि वो दो महीने के भीतर जांच रिपोर्ट सौंप दे |

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सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी के सदस्यों के नाम भी तय कर दिये है | ये कमेटी  Supreme Court  के ही रिटायर्ड जस्टिस एएम सप्रे की अध्यक्षता में जांच का काम करेगी | कमेटी में बैंकर और रिटायर्ड जजों के अलावा एक वकील और एक बड़े टेक-उद्यमी नंदन नीलेकणि को भी शामिल किया गया है | इंफोसिस के सह संस्थापक रहे नंदन नीलेकणि की आधार को मौजूदा स्वरूप में भी बड़ी भूमिका रही है |

नंदन नीलेकणि के अलावा कमेटी में जस्टिस जेपी देवधर, केवी कामत, ओपी भट्ट और सोमशेखर सुंदरसन को शामिल किया गया है | ओपी भट्ट और केवी कामत जहां जाने माने बैंकर हैं, वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट से अवकाश ग्रहण करने वाले जस्टिस जेपी देवधन सिक्योरिटीज ऐपेलेट ट्राइब्यूनल के चेयरपर्सन भी रह चुके हैं‌ |

सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों की तीन खास बातें –

  1. अदानी-हिंडनबर्ग केस में में सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो विपक्ष के लिए खुशी की बात है – जेपीसी के अलावा जांच के लिए विपक्ष की एक मांग तो यही थी |
  2. अदानी केस में इस फैसले को एक तरीके से सरकार के खिलाफ भी मान सकते हैं और उसी नजरिये से देखें तो चुनाव आयोग पर आया फैसला भी सरकार के खिलाफ ही है |
  3. चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसमें एक तरीके से सरकार को जवाब भी दिया है और ये भी संकेत मिलता है कि कुछ चीजें सभी के लिए नहीं हो सकतीं |

आखिर में एक सहज सवाल भी उठ रहा है | आखिर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसा कोई सिस्टम बनाने का आदेश क्यों नहीं दिया ? क्या ब्यूरोक्रेसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट को जजों जैसा भरोसा नहीं है ?

डा प्रदीप चतुर्वेदी