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जब राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार संकट में आ गई थी तब 40 दिन तक कई विधायक होटल में रहे। उन संकट के साथियों का साथ देने का वादा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया था। चुनाव के दौरान राजस्थान में कई सीटों पर उन्होंने अपना यह वादा निभाया भी है।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए जोधपुर में अब तक जारी हुए चार टिकट में 2 सीट पर यह वादा निभाया गया है, लेकिन तीन विधायक अब भी ऐसे हैं जिनको संकट से नहीं उबार पाए हैं। इसका बड़ा कारण है धरातल पर हुए उनके सर्वे। सर्वे में कई नेताओं की स्थिति कमजोर है, ऐसे में इन सीटों पर कांग्रेस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। यही कारण है कि संकट अभी टला नहीं है।
लोहावट: किसनाराम बिश्नोई किसनाराम बिश्नोई पहली बार 2018 में ही चुनावी मैदान में उतरे और भाजपा के दिग्गज नेता और तत्कालीन मंत्री गजेंद्र सिह खींवसर को 40867 वोट से हराकर विधानसभा पहुंचे। लेकिन स्थानीय स्तर पर उनके खिलाफ एंटीइनकमबेंसी सामने आती गई। हालांकि गहलोत के प्रति वह अपनी वफादारी हर बार साबित करते रहे। इस बार ग्राउंड सर्वे हुआ तो उसमें उनकी स्थिति कमजोर पाई गई। यही कारण है कि कांग्रेस की दो सूचियों में भी उनका नाम नहीं आया। हालांकि अब इस सीट पर जातिगत समीकरण बदले जाने की भी चर्चा है।
शेरगढ़: मीना कंवर यह सीट सालों तक भाजपा का गढ़ रही। लगातार तीन बार बाबू सिंह राठौड़ यहां से जीते। 2018 में पहली बार मीना कंवर इस सीट पर उतरीं और 24696 वोट से जीत दर्ज की। हालांकि इससे पहले दो बार उनके पति उम्मेद सिंह इस सीट पर हार चुके थे। मीना कंवर व उनके पति उम्मेद सिंह ने भी संकट के समय सीएम गहलोत का साथ दिया। इसका जिक्र कई बार सीएम खुद करते रहे हैं। यहां किसी भी स्थिति में जातिगत समीकरण नहीं बदलेंगे, इसके बावजूद अब तक टिकट रोके रखा है। इसका कारण ग्राउंड सर्वे में स्थिति कमजोर होना बताया जा रहा है।
बिलाड़ा: हीराराम मेघवाल एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही पास ज्यादा विकल्प नहीं है। भाजपा यहां अपने पत्ते खोल चुकी है और एक बार फिर अर्जुनलाल गर्ग को पहली सूची में ही मैदान में उतार दिया। कांग्रेस से वर्तमान विधायक हीराराम मेघवाल को अब तक इंतजार है। जबकि संकट के साथियों की सूची में वे भी शामिल थे। ऐसे में उनको उम्मीद थी कि सीएम साथ देंगे। ऐसा नहीं है कि सीएम इन साथियों को भूलना चाहते हैं, लेकिन सूत्रों के अनुसार आलाकमान के मापदंडों पर ये फिलहाल ये फिट नहीं बैठ रहे।