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सत्ता और समाज में महिलाओं की हिस्सेदारी जैसे मुद्दे को भुनाने के लिए भले ही नेता सियासी मंचों से भावनात्मक भाषण देते रहे हों, लेकिन राजस्थान का चुनावी इतिहास देखें तो दोनों प्रमुख दल व्यवहारिकता की पहली सीढ़ी पर ही पलटी मारते दिखे हैं। सत्ता में बराबरी का दर्जा तो दूर की बात, दलों ने पर्याप्त संख्या में महिलाओं को टिकट तक नहीं दिए। 25 लोकसभा सीट वाले राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस ने 2014 और 2019 में सात-सात और 2009 में सिर्फ तीन ही महिलाओं को टिकट दिया था।
बहुमत वाले दल में 100 प्रतिशत महिला सफल
बीते तीन चुनावों में देखें तो यह ट्रेंड भी देखने मिला है कि जिस दल को बहुमत मिला है, उस दल से खड़ी हुईं सभी महिला प्रत्याशी जीत कर संसद पहुंचीं हैं। 2014 में भाजपा सभी 25 सीटों पर जीती तो उसके टिकट पर खड़ी एक मात्र महिला प्रत्याशी संतोष अहलावत जीती। 2019 में भी क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा ने 3 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया तो तीनों ही जीतीं। इनमें रंजीता कोली, जसकौर मीणा और दीया कुमारी शामिल हैं। ऐसे ही 2009 में जब कांग्रेस ने 20 सीटें जीती तो उसकी भी तीन महिला सांसद जीत कर आईं। इनमें ज्योति मिर्धा, चंद्रेश कुमारी और गिरिजा व्यास थी।
इस बार 50 में से 8 महिला
2024 का चुनाव देखें तो इस बार दोनों दलों ने अब तक 8 महिला उम्मीदवारों को टिकट दे दिए हैं, जबकि कांग्रेस को बांसवाड़ा और भाजपा को भीलवाड़ा सीट पर उम्मीदवार उतारना शेष है। भाजपा ने गंगानगर से प्रियंका बालन, जयपुर से मंजू शर्मा, करौली-धौलपुर से इंदूदेवी, नागौर से ज्योति मिर्धा और राजसमंद से महिमा विश्वेश्वर सिंह को उतारा है। कांग्रेस ने भरतपुर से संजना जाटव, पाली से संगीता बेनीवाल और झालावाड़ से उर्मिला जैन भाया को टिकट दिया है।