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उत्तराखंड के बाद अब बीजेपी शासित राजस्थान में भी यूसीसी का मुद्दा गरमा गया है। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने राज्य में समान नागरिक संहिता को लेकर ड्राफ्ट कमेटी बनाने का प्रस्ताव मंत्री परिषद की पहली बैठक में अपनी ओर से प्रस्तुत करने का आश्वासन दिया है। गौरतलब है कि 8 फरवरी से विधानसभा फिर से शुरू हो रही है। ऐसे में यूसीसी का मुद्दा सियासी रूप से भी अहम है। यही नहीं ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराद मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा ने भी UCC बिल का समर्थन किया है. मीणा ने कहा कि, यह बहुत आवश्यक है. समय और देश की परिस्थिति का हिसाब से क्योंकि कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए. एक देश एक कानून की बात भी कही. साथ ही कहा कि, इस बारे में मुख्यमंत्री से बात करूगा कि, अपने यहा भी यह लाया जाना चाहिए. आपको बता दें कि, उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने संबंधी विधेयक 6 फरवरी को विधानसभा में प्रस्तुत होने के साथ ही यह दिन हमेशा के लिए यादगार बन गया है। यह स्वाभाविक भी है। स्वतंत्रता के बाद जो काम अब तक अन्य राज्य नहीं कर पाए, वह उत्तराखंड सरकार ने कर दिखाया।
धामी सरकार की यह पहल जहां दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण बनेगी, इसने देशभर में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के राजनीतिक कद में भी बढ़ोतरी कर दी है। मार्च 2021 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभालने के बाद से लेकर अब तक पुष्कर सिंह धामी और उनकी सरकार एक के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय लेकर देशभर में चर्चा के केंद्र में है. यूसीसी के कानून बनने पर राज्य में सभी के लिए सिविल कानून भी एक समान हो जाएंगे। समान नागरिक संहिता कानून लागू होने के बाद अन्य राज्य भी इसी तरह की पहल अपने यहां कर सकेंगे। विशेषकर भाजपा शासित राज्य इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, जबकि अन्य पर इसके लिए दबाव बनेगा। थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो सरकार ने राज्य में भर्ती परीक्षाओं में नकल की रोकथाम के लिए सख्त कानून बनाया है। इसे देशभर का सबसे कड़ा कानून बताया जा रहा है। यही नहीं, अब केंद्र सरकार भी सोमवार को संसद में नकलरोधी कानून से संबंधित विधेयक लेकर आई है। धामी सरकार के अन्य निर्णयों को देखें तो लैंड जिहाद थामने के दृष्टिगत कानून को कठोर बनाने के साथ ही सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने को चलाई गई मुहिम देशभर में चर्चा के केंद्र में रही थी। इसी प्रकार लव जिहाद पर अंकुश के दृष्टिकोण से मतांतरण कानून के सख्त किए गए प्रविधान भी चर्चा के केंद्र में रहे थे। ऐसी ही तस्वीर सरकार के अन्य कदमों को लेकर भी है। समग्रता में देखें तो सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों ने मुख्यमंत्री धामी के राजनीतिक कद को बढ़ाने का भी काम किया है। यह इससे भी साबित होता है कि कुछ समय पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री धामी को मोर्चे पर उतारा था। अब जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, तो आने वाले दिनों में भाजपा नेतृत्व उत्तराखंड की इस पहल का लाभ लेने का प्रयास करेगा। साथ ही मुख्यमंत्री धामी का चुनाव में अधिक से अधिक उपयोग किया जाएगा, इसमें संदेह नहीं है। संविधान को बनाते समय संविधान सभा में व्यापक बहस के बाद इस बात पर जोर दिया गया था कि राष्ट्रहित में देश में समान नागरिक संहिता उपयुक्त समय पर बनाई जानी चाहिए। बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के प्रबल पक्षधर थे।
आपको बतातें हैं समान नागरिक सहिंता की जरुरत क्यों है...भारत के संविधान को बनाते समय संविधान सभा में व्यापक बहस के बाद इस बात पर जोर दिया गया था कि राष्ट्रहित में देश में समान नागरिक संहिता उपयुक्त समय पर बनाई जानी चाहिए। बाबा साहब डा भीमराव आंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के प्रबल पक्षधर थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी विभिन्न मामलों में दिए गए अपने निर्णयों में इस संहिता के पक्ष में उचित टिप्पणियां की गईं। वैसे भी देश में आपराधिक और दीवानी मामलों के लिए एक समान कानून लागू हैं। ऐसे में सिविल कानून भी सबके लिए समान रूप से लागू होने पर यह देश की मूल भावना अनेकता में एकता के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा। दूसरा सवाल है - जनजातियों को संहिता के दायरे से क्यों बाहर रखा गया? संविधान के अनुच्छेद 366 व 342 में अनुसूचित जनजातियों को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति ने जब राज्य के जनजातीय समूहों से संवाद किया तो जनजातीय समाज की ओर से विभिन्न वर्गों में आपसी विमर्श व सहमति बनाने के लिए कुछ समय देने का आग्रह किया गया। वैसे भी अन्य वर्गों की तुलना में जनजातीय समुदाय में महिलाओं की स्थिति बेहतर है। आपको बताते हैं संहिता में आनंद मैरिज एक्ट के लिए क्या प्रविधान है? विधेयक में सभी धर्म औऱ वर्ग में विवाह अनुष्ठानों पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। सप्तपदि, आशीर्वाद, निकाह, पवित्र बंधन, आनंद कारज, आर्य समाजी विवाह, विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत विवाह आदि अनुष्ठानों को संरक्षित रखा गया है। अब आपके मन में सवाल होगा विवाह पंजीकरण अधिनियम का क्या होगा? समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद राज्य में वर्ष 2010 से लागू अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम समाप्त हो जाएगा। आगला सवाल है मृत व्यक्ति की संपत्ति का विभाजन किस प्रकार होगा?- संहिता में संपत्ति शब्द को हटाकर संपदा का प्रयोग किया गया है। मृतक की सभी प्रकार की चल-अचल, पैतृक, संयुक्त, मूर्त-अमूर्त किसी भी संपत्ति में हिस्सा, हित या अधिकारी को सम्मिलित किया गया है। संहिता लागू होने के बाद पैतृक संपत्ति व्यक्ति की स्वयं अर्जित संपत्ति मानी जाएगी। इसका विभाजन उसके उत्तराधिकारियों के मध्य तय नियमानुसार होगा...6- कोई अपनी संपदा की कितनी वसीयत कर सकता है?
कोई भी व्यक्ति अपनी संपूर्ण संपदा की वसीयत कर सकता है। अभी तक मुस्लिम, ईसाई व पारसी समुदायों के लिए वसीयत के अलग-अलग नियम थे। संहिता लागू होने के बाद सभी धर्मों, वर्गों के लिए वसीयत का अधिकार समान होगा। 7- गोद लेने का प्रविधान क्यों नहीं है. जस्टिस जुविनाइल एक्ट में सभी वर्गों के लिए अनाथालयों व बालगृहों के अलावा अपने रिश्तेदारों से गोद लेने का प्रविधान पहले से ही है। इससे संबंधित संस्थाएं व प्रक्रिया पहले से निर्धारित है। संभवतया, इसलिए इस विषय को संहिता के दायरे में नहीं लिया गया। 8- गार्जियनशिप से संबंधित प्रविधान संहिता में क्यों नहीं हैं? गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट एक केंद्रीय कानून है, जो सभी पर समान रूप से लागू होता है। 9- समान नागरिक संहिता किन पर होगी लागू?
राज्य के सभी निवासियों के साथ ही राज्य सरकार के सभी कार्मिकों, राज्य में कार्यरत केंद्र सरकार या उसके उपक्रम में कार्मिकों, राज्य में एक साल से निवासरत व्यक्तियों, केंद्र व राज्य की योजनाओं के लाभार्थियों पर यह लागू होगी। कहने का आशय यह कि राज्य में रह रहे सभी व्यक्तियों पर सिविल कानून समान रूप से लागू होंगे।