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समाज ने महिलाओं की सोच को इस तरह बना दिया है कि एक महिला अगर खुद के लिए कुछ करती है तो उसे सेल्फिश होने की कैटेगरी में रख दिया जाता है. इस वजह से वे जो भी कुछ करना चाहती है, उस विषय पर इतना अधिक सोचने लगती हैं कि वे अंत में अपराधबोध महसूस करने लगती हैं.
सेल्फिश की कैटेगरी में डालना
सबसे पहले बात आती है सेल्फकेयर की. जी हां, यह देखा जाता है कि अगर कोई महिला अपने लिए समय निकालती है और खुद को बेहतर बनाने के लिए कुछ करती है तो उसे सेल्फिश की कैटेगरी में डाल दिया जाता है. जबकि महिलाओं को यह जानना जरूरी है कि महिलाएं अगर खुद का ख्याल नहीं रखेंगी तो भला औरों का केयर कैसे कर पाएंगी.
करियर ऑप्शन का सवाल
महिलाएं अपने करियर ऑप्शन चुनने को लेकर भी कई बार गिल्ट महसूस करने लगती हैं. मसलन, अगर महिला फोर्स में किसी पोस्ट पर है या उसे रात में ड्यूटी पर दफ्तर जाना पड़ता है, तो मन ही मन वह अपराधबोध महसूस करती है और हर तरह की गलती की वजह खुद को मानने लगती है. लेकिन आपको यह समझना होगा कि हर करियर में ऐसी चुनौतियां होती हैं, जब आप अपने पैरों पर बेहतर तरीके से खड़ी होंगी और ऐसी चुनौतियों का सामना कर पाएंगी.
मेंटल हेल्थ को लेकर खुलकर न बोल पाना
अपने मेंटल हेल्थ का ख्याल रखना या थेरेपिस्ट की मदद लेना स्टिगमा बन गया है. लेकिन अगर आप मेंटली थकान महसूस कर रही हैं और परेशान हैं तो आपको जरूर अपने मेंटल हेल्थ के लिए मदद लेनी चाहिए. कई महिलाएं इस बात को लेकर भी अपराधबोध में दबने लगती हैं कि यह सब फिजूल बातें हैं.
‘ना’ कहना बन जाता है मुसीबत
किसी को ‘ना’ कहना भी कई बार महिला के लिए मुश्किल हो जाता है और ऐसा करने पर वह अपराधबोध महसूस करने लगती है. लेकिन आपको बता दें कि अगर कोई आपसे वह काम कराना चाह रहा है जो गलत है या जो आपको या किसी को नुकसान पहुंचा सकता है तो आप बिल्कुल ‘ना’ कहें. याद रखिए कि ‘ना’ कहना स्वार्थी होना नहीं है.