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BJP और Congress के बीच क्या Rajasthan में Aam Aadmi Party अपनी जगह बना पाएगी ?

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अब जनता कांग्रेस-भाजपा से परेशान हो चुकी है
30%
'आप' की वजह से कांग्रेस और भाजपा में चिंता है
10%
केजरीवाल राजस्थान में कामयाब नहीं हो पाएंगे
90%
राजस्थान में भी 'आप' की सरकार बननी चाहिए
70%
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डेगाना विधानसभा क्षेत्र से आप किसको भाजपा का जिताऊँ प्रत्याशी मानते है ?

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कर्नाटक का मुख्यमंत्री किसे बनाया जा सकता है?

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सिद्देरमैया
67%
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13%
मल्लिकार्जुन खड़गे
13%
बता नहीं सकते
7%
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फिल्मों के विवादित होने के क्या कारण हैं?

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समुदाय विशेष को टारगेट करना
33%
राजनीतिक लाभ लेने के लिए
11%
फिल्मों को हिट करने के लिए
44%
कुछ बता नहीं सकते
11%
Total count : 9

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शिव के धारण किए प्रतीकों के हैं कई मायने, यहां पढ़े पूरी स्टोरी

शिव के धारण किए प्रतीकों के हैं कई मायने, यहां पढ़े पूरी स्टोरी
Pooja Parmar
July 4, 2023

सावन के पवित्र महीने में भगवान शिव की आराधना की जाती है. श्रद्धालु इस महीने शिवलिंग का जलाभिषेक और दुग्‍धाभिषेक करते हैं. कुछ लोग पूरे परिवार के साथ मिलकर रुद्राभिषेक भी करते हैं. आपने गौर किया होगा कि भगवान शिव के गले में सर्प, जटाओं में गंगा, मस्‍तक पर चांद, हाथों में डमरू, माथे पर तीसरी आंख होती है. वहीं, उनके नजदीक नंदी हमेशा रहते हैं. इन सभी को भगवान शिव के पवित्र प्रतीक माना जाता है. जानते हैं कि शिव इन सभी प्रतीकों को क्‍यों धारण किया हुआ है?

सद्गुरु की किताब ‘शिवा – अल्‍टीमेट आउटलॉ अलॉन्‍ग विद वैराग्‍या, एन एल्‍बम ऑफ सैक्रेड चैंट्स’ के मुताबिक, भगवान शिव को तीसरी आंख के कारण ही त्रयंबक भी कहा जाता है. इसका मतलब है कि तीसरी आंख धारण करने वाले की सोच और नजरिये का नया आयाम खुल गया है. अगर आपको अपनी धारणा को विकसित करना है और खुद को बढ़ाना है, तो ऊर्जा को बढ़ाना होगा. योग की पूरी प्रक्रिया आपकी ऊर्जा को इस तरह विकसित और परिष्कृत करने के लिए है कि आपका नजरिया विकसित हो और तीसरी आंख खुल जाए. 

किसी के नजरिये का विस्‍तार है तीसरी आंख
तीसरी आंख दृष्टि यानी नजरिये की आंख है. दो भौतिक आंखें केवल ज्ञानेन्द्रियां हैं. दोनों भौतिक आंखें आपके दिमाग को हर तरह की चीजें दिखाती हैं. इससे आपकी सोच उन चीजों के बारे में विकसित होती है. आप हर चीज को उसके भौतिक स्‍वरूप में तो देखते हैं, लेकिन उसमें मौजूद शिव को नहीं देख पाते हैं. हर चीज में शिव को देखने के लिए आपको अपनी तीसरी आंख खोलनी होगी. तीसरी आंख खुलने का मतलब है कि आपकी धारणा जीवन के झंझटों से परे चली गई है. आप जीवन को वैसे ही देखने लगते हैं, जैसा वह वास्‍तव में है.

क्‍या है शिव के सामने विराजे नंदी के मायने
भगवान शिव के सामने दिखने वाले नंदी शाश्‍वत प्रतीक्षा का प्रतीक हैं. भारतीय संस्कृति में प्रतीक्षा को सबसे बड़ा गुण माना गया है. जो व्यक्ति प्रतीक्षा करना जानता है, वह स्वाभाविक रूप से ध्यानमग्‍न होता है. शिवालय के बाहर विराजे नंदी को किसी चीज की आशा नहीं है. वह बस इंतजार कर रहे हैं. यह गुण ग्रहणशीलता का सार है. किसी मंदिर में जाने से पहले आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए यानी बस बैठने का गुण होना चाहिए. लोगों ने ध्यान को किसी प्रकार की गतिविधि के रूप में गलत समझा है. यह एक गुणवत्ता है. यही मूलभूत अंतर है.

ध्‍यान में ईश्‍वर को सुनने का रहता है प्रयास
प्रार्थना का अर्थ है कि आप ईश्‍वर से बात करने का प्रयास कर रहे हैं. ध्यान का अर्थ है कि आप ईश्‍वर की बात सुनने के इच्छुक हैं. आप केवल अस्तित्व को सृष्टि की परम प्रकृति को सुनने के इच्छुक हैं. आपके पास कहने को कुछ नहीं है. आप बस सुनने की कोशिश कर रहे हो. यही नंदी का गुण है. वह बस सचेत होकर बैठे रहते हैं. ध्‍यान के लिए यही सबसे महत्वपूर्ण गुण है. यहां ये ध्‍यान देने की बात है कि नंदी सतर्क होकर बैठे हैं, वह नींद में नहीं हैं. वह निष्क्रिय नहीं सक्रियता और सतर्कता से भरे हुए जीवन से भरपूर बैठे हैं.

तीन पहलुओं का प्रतिनिधित्‍व करता त्रिशूल
सद्गुरु कहते हैं कि शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूलभूत पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है. इन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्‍ना भी कहा जा सकता है. ये प्राणमय कोष या मानव प्रणाली के ऊर्जा शरीर में दाएं, बाएं और मध्‍य की मूल नाड़ियां हैं. नाड़ियां मानव प्रणाली में प्राण के मार्ग या चैनल हैं. तीन मूलभूत नाड़ियों से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं. पिंगला और इड़ा हमारे अस्तित्व में मूल द्वैत का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह वह द्वंद्व है, जिसे हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति के रूप में व्यक्त करते हैं. आप इसे सीधे तौर पर पुल्लिंग और स्‍त्रीलिंग कह सकते हैं.

इड़ा-पिंगला के बीच संतुलन क्‍यों है जरूरी
सद्गुरु कहते हैं कि जब मैं पुल्लिंग और स्‍त्रीलिंग कहता हूं, तो पुरुष या महिला की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि प्रकृति में कुछ गुणों की बात कर रहा हूं. इड़ा और पिंगला के बीच संतुलन से आप दुनिया में प्रभावी बनेंगे. इससे आप जीवन के पहलुओं को अच्छी तरह से संभाल सकेंगे. अधिकांश लोग इड़ा और पिंगला में जीते व मरते हैं. सुषुम्‍ना केंद्रीय स्थान हैं और सुप्त रहता है. सुषुम्‍ना मानव शरीर विज्ञान का सबसे अहम पहलू है. जीवन वास्तव में तभी शुरू होता है, जब ऊर्जा सुषुम्‍ना में प्रवेश करती हैं. आप एक नए प्रकार का संतुलन हासिल करते हैं.

सोमसुंदर भी है भगवान शिव का एक नाम
शिव के कई नाम हैं. उन्‍हें सोमा, सोमसुंदर या चंद्रशेखर भी कहा जाता है. सोम का शाब्दिक अर्थ चंद्रमा हो सकता है, लेकिन सोम का मतलब मद्यपान या नशा है. शिव चंद्रमा को सजावट के रूप में उपयोग करते हैं, क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय योग के नशे में रहते हैं, लेकिन वह भौतिक नशे में बेहोश नहीं हैं, बल्कि सतर्क रहते हैं. योग का विज्ञान आपको यह आनंद देता है कि आप हर समय आंतरिक रूप से नशे में रहें, लेकिन शत-प्रतिशत स्थिर और सतर्क रहें. कुछ शोध में पाया गया है कि मानव मस्तिष्क में लाखों कैनबिस रिसेप्‍टर्स हैं.

क्‍या है हमारे शरीर में बनने वाला आनंदमाइड
सद्गुरु कहते हैं कि शरीर अपना खुद का मादक पदार्थ उत्पन्‍न करता है. इससे शांति, आनंद और आनंद की भावनाएं बाहर से किसी भी उत्तेजना के बिना आपके भीतर पैदा हो सकती हैं. जब वैज्ञानिकों ने इस रसायन को उचित नाम देना चाहा, तो वह भारत आए और उन्हें आनंद शब्द मिला. इसलिए उन्होंने इसे आनंदमाइड कहा. अगर आप अपने सिस्टम में पर्याप्त मात्रा में आनंदमाइड उत्पन्‍न करते हैं, तो आप हर समय नशे में रह सकते हैं, लेकिन पूरी तरह से जागते हुए. ध्‍यान की स्थिति में व्‍यक्ति अवचेतन में रहते हुए भी सतर्क रहता है.

सांप भी होते हैं कुछ ऊर्जाओं के प्रति संवेदनशील
सांप भी कुछ ऊर्जाओं के प्रति बहुत संवेदनशील होता है. शिव के गले में सर्प है. यह सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है. इसके पीछे बहुत सारा विज्ञान है. ऊर्जा शरीर में 114 चक्र हैं. इन 114 में से लोग आमतौर पर प्रणाली में सात मौलिक चक्रों के बारे में बात करते हैं. इन सात मूलभूत चक्रों में से विशुद्धि चक्र आपके गले के गड्ढे में स्थित है. यह विशेष चक्र सांप से बहुत मजबूती से जुड़ा हुआ है. विशुद्धि जहर को रोकने के बारे में है और सांप जहर रखता है. ये सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं. बता दें कि विशुद्धि शब्द का शाब्दिक अर्थ फिल्टर है.

विशुद्धि के शक्तिशाली होने से क्‍या होगा फायदा
अगर आपकी विशुद्धि शक्तिशाली हो जाती है, तो आपके अंदर हर चीज फिल्टर करने की क्षमता आ जाती है. शिव का केंद्र विशुद्धि माना जाता है और उन्हें विषकंठ या नीलकंठ के रूप में भी जाना जाता है. वह सभी तरह के जहर को फिल्टर कर देते हैं. वह इसे अपने सिस्टम में प्रवेश नहीं करने देते. ये भी जरूरी नहीं कि आप सिर्फ भोजन के जरिये ही जहर ले रहे हों. गलत विचार, गलत भावना, गलत ऊर्जा या गलत आवेग भी आपके जीवन में जहर घोल सकता है. अगर आपकी विशुद्धि सक्रिय है तो यह हर चीज को फिल्टर कर देती है.

शिव के हाथों में मौजूद डमरू के क्‍या हैं मायने
वेदों और पुराणों में भगवान श‌िव को संहारकर्ता बताया गया है. वहीं, श‌िव का नटराज रूप ठीक इसके उलट है. भगवान नटराज प्रसन्‍न होते हैं और नृत्य करते हैं. नृत्‍य करते श‌िव के हाथों में डमरू रहता है. डमरू का आकार रेत घड़ी जैसा है. ये द‌िन-रात और समय के संतुलन का प्रतीक है. भगवान श‌िव भी ऐसे ही हैं. इनका एक स्वरूप वैरागी का है तो दूसरा भोगी का है, जो नृत्य करता है और पर‌िवार के साथ रहता है. वहीं, श‌िव आद‌ि देव हैं और डमरू को आद‌ि वाद्ययंत्र माना जाता है.

शिव ने 14 बार क्‍यों बजाया था अपना डमरू
सृष्टि की शुरुआत में देवी सरस्वती ने अपनी वीणा के स्वर से ध्वन‌ि जो जन्म द‌िया, लेक‌िन यह सुर और संगीत व‌िहीन थी. तब भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए 14 बार डमरू बजाया. इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के छन्द और ताल का जन्म हुआ. कहते हैं क‌ि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है, जो दूर से व‌िस्‍तृत नजर आता है. वहीं, जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं तो वह संकु‌च‌ित होकर दूसरे स‌िरे से म‌िल जाता है. इसके बाद फ‌िर व‌िशालता की ओर बढ़ता है. वेद-पुराणों के मुताबिक, सृष्ट‌ि में संतुलन के ल‌िए भगवान श‌िव अपने साथ डमरू लेकर प्रकट हुए थे.

माथे पर त्रिपुंड क्‍यों धारण करते हैं शिव
श‌िव के माथे पर भभूत से बनी तीन रेखाएं नजर आती हैं. इन्‍हें तीनों लोको का प्रतीक माना जाता है. इसे रज, तम और सत गुणों का प्रतीक भी कहा जाता है. पुराणों के मुताबिक, दक्ष प्रजपत‌ि के यज्ञ कुंड में सती के आत्मदाह के बाद भगवान श‌िव उग्र रूप धारण कर लेते हैं. फिर वह सती की देह को कंधे पर लेकर तीनों लोकों में हाहाकार मचाने लगे. बाद में भगवान व‌िष्‍णु ने चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. इसके बाद भगवान श‌िव ने अपने माथे पर हवन कुंड की राख लगा ली. भगवान शिव सती की याद को त्र‌िपुंड रूप में माथे पर स्‍थान देते हैं.

शिव के धारण किए प्रतीकों के हैं कई मायने, यहां पढ़े पूरी स्टोरी