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भगवान शिव से जुड़ी है शंकराचार्य के जन्म की कहानी, पढ़िए कैसे बने शंकर से आदि शंकराचार्य
आज 25 अप्रैल को आदि शंकराचार्य की जयंती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हिंदूओं के सबसे बड़े धर्माचार्य आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन दक्षिण भारत के नन्बूदरी ब्राह्राण के कुल में हुआ था। आदि शंकराचार्य को मात्र 8 वर्ष की छोटी आयु में सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त था। हिंदू धर्म की पुर्नस्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के कालटी नामक गांव में नंबूदरी ब्राह्राण परिवार में जन्म हुआ था। नम्बूदरी ब्राह्राण वंश के लोग आज भी बद्रीनाथ के मंदिर में रावल होते हैं। इसके अलावा ज्योतिषर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्राण ही बैठते हैं। आदि शंकराचार्य बचपन में ही बहुत प्रतिभाशाली थे। उनके जन्म के बारे में कुछ प्रसंग इस प्रकार है।
- आदि शंकराचार्य ने मात्र 32 साल की आयु में हिमालय क्षेत्र में समाधि ले ली थी। आदि शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करते हुए देश के चारों दिशाओं में चार प्रमुख पीठी को स्थापना की थी। जिसे आज के समय में चार धाम के नाम से जाना जाता है। शंकराचार्य जी ने जगन्ननाथ पुरी, रामेश्वरम, द्वारिका और बद्रीनाथ धाम की स्थापना की थी।
-आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की जड़ों का को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया था। आदि शंकराचार्य ने देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक के क्षेत्र में अतुलनीय काम किया था। देश को धार्मिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने खास प्रबंध किए थे। जिसमें उन्होंने उत्तर भारत में बदरीनाथ धाम की स्थापना की थी और इस धाम में दक्षिण भारत के ब्राह्राण पुजारी को रखा। दक्षिण भारत में रामेश्वरम में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। पूर्वी भारत के धाम मे यानी जगन्नाथ मंदिर में पश्चिम भारत के पुजारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के पुजारी को रखा। इसके पीछे भारत के आध्यामिक और सांस्कृतिक को मजबूती देते हुए पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधना के मात्र कारण था। इसके अलावा आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों की भी स्थापना में अपना योगदान दिया था।
आदि शंकराचार्य जन्म कथा और रोचक बातें
- ब्राह्राण दंपति के विवाह होने के कई साल के बाद भी कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठिन तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उनको दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा।
- इसके बाद ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर से ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु भी हो और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैले। तब भगवान शिव ने कहा कि या तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ, जो दीर्घायु होगा वो सर्वज्ञ नहीं होगा और अगर सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु नहीं होगी। तब ब्राह्राण दंपति ने वरदान के रूप में दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की।
- वरदान देने के बाद भगवान शिव ने ब्राह्राण दंपति के यहां संतान रूप में जन्म लिया। वरदान के कारण ब्राह्राण दंपति ने पुत्र का नाम शंकर रखा। शंकराचार्य बचपन से प्रतिभा सम्पन्न बालक थे। जब वह मात्र तीन साल के थे तब पिता का देहांत हो गया। तीन साल की उम्र में ही उन्हें मलयालम का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
- आठ साल की उम्र में उन्हें वेदों का पूरा ज्ञान हो गया था और 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की अवस्था में 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। बाद में माता की आज्ञा से वैराग्य धारण कर लिया था। मात्र 32 साल की उम्र में केदाननाथ में उनकी मृत्यु हो गई। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी जिसे आज शंकराचार्य पीठ कहा जाता है।