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बिहार में जातीय गणना पर लगी रोक हटी, पटना हाईकोर्ट ने रोक की मांग से जुड़ी याचिकाएं खारिज की; भाजपा-आरजेडी ने फैसले का स्वागत किया
The Fact India: जातीय जनगणना को लेकर पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को बिहार सरकार को बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने रोक की मांग से जुड़ी याचिकाएं खारिज कर दी हैं। पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस पी सार्थी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए एक लाइन में कहा कि रिट याचिका खारिज की जाती है। बिहार में अब जातीय गणना पूरी होगी। याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कहा कि हम लोग हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हाईकोर्ट के इस फैसले का स्वागत उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और भाजपा ने की है।
बता दें कि 4 मई को पटना हाईकोर्ट ने जातीय गणना पर रोक लगाते हुए सरकार से कलेक्ट किए गए डेटा को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था। इस मामले में तीन जुलाई से सुनवाई शुरू हुई जो लगातार पांच दिनों तक चली। पटना हाईकोर्ट ने 7 जुलाई को इस मामले में सुनवाई पूरी की।
चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस पी सार्थी की बेंच के सामने पहले तीन दिन याचिकाकर्ता की ओर से दलील रखी गई। फिर दो दिन बिहार सरकार के एडवोकेट जनरल पी के शाही ने दलील पेश की। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सरकार का कहना है कि 80 फीसदी काम हो चुका है। इसके लिए 500 करोड़ का बजट था।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि जातीय गणना आर्थिक न्याय की दिशा में क्रांतिकारी कदम होगा। हमारी मांग है कि केंद्र सरकार जातीय गणना करवाए। भाजपा ने भी हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। विजय सिन्हा ने कहा कि हम लोग जातिगत गणना के समर्थक रहे हैं। सरकार गणना के उद्देश्य को बताने में असफल रही। बिहार सरकार की नीयत में खोट है।
भारत में सबसे पहले जातीय जनगणना 1931 में हुई। 1941 में भी इसका डेटा इकट्ठा किया गया। लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। 2011 में जातीय व सामाजिक-आर्थिक गणना हुई, लेकिन कई विसंगतियों के चलते इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए।