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सेम-सेक्स मैरिज के खिलाफ राजस्थान, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को पत्र भेजा, सात प्रदेशों ने चिट्ठी का जवाब दिया, छह बहस के पक्ष में
The Fact India: सेम सेक्स मैरिज की मान्यता को लेकर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को चिट्ठी लिखी थी। सात राज्यों ने केंद्र को चिट्टी का जवाब भेजा है। इनमें से छह राज्य इस मसले पर बहस के पक्ष में हैं। राजस्थान सेम-सेक्स मैरिज के खिलाफ है। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सेम-सेक्स मैरिज को मान्यता देने वाली 20 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस मामले पर 9वें दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। 10वें दिन गुरुवार को दोपहर 12 बजे से सुनवाई शुरू होगी। गुरुवार को सबमिशन का फाइनल फेज होगा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की संवैधानिक बेंच दलीलें सुन रही है। इधर नौंवे दिन सुनवाई के दौरान एक इंटरवीनर एंसन थॉमस सीजेआई चंद्रचूड़ को ही सेम-सेक्स मैरिज की सुनवाई से हटाने की याचिका लेकर पहुंचा, जिसे खारिज कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि 18 अप्रैल को मामले पर राय रखने के लिए सभी राज्यों को पत्र लिखे गए थे। उनमें से मणिपुर, आंध्रप्रदेश, यूपी, महाराष्ट्र, असम, सिक्किम और राजस्थान से जवाब मिले हैं। राजस्थान इसके विरोध में है। बाकी राज्यों का कहना है कि इस मुद्दे पर बहस की जरूरत है।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को बेकर के केस की जानकारी होगी। उसने सेम-सेक्स कपल के लिए केक बनाने से इनकार कर दिया था। उस पर केस कर दिया गया। अमेरिका में भी ऐसा हुआ था। जब एक पादरी ने सेम-सेक्स मैरिज कराने से इनकार कर दिया गया था। उस पर केस कर दिया गया। इसके बाद पादरी की सुरक्षा के लिए कानून बनाना पड़ा।
ऐसी स्थिति की कल्पना करिए कि आपने सेम-सेक्स मैरिज का कानून बना दिया। आप ने नियम की रूपरेखा की घोषणा नहीं की। इसके बाद कोई सेम-सेक्स कपल पुजारी के पास शादी के लिए गया। उसने यह कहकर इनकार कर दिया कि उसका धर्म केवल पुरुष और महिला की शादी कराने की इजाजत देता है तो क्या उसे कोर्ट की अवमानना का दोषी नहीं माना जाएगा?
तुषार मेहता की इस दलील पर जस्टिस भट ने कहा कि यह उस पुजारी का मौलिक अधिकार है कि वह अपने धर्म और अंतरआत्मा का पालन करे। जज की इस टिप्पणी पर तुषार मेहता ने कहा कि उसकी अंतरआत्मा कहां रुकेगी और कहां से उसका कर्तव्य शुरू होगा? इस पर जस्टिस भट ने कहा कि इसीलिए फैसले की विषय वस्तु भी जरूरी है। आप सभी अंदाजा लगा रहे हैं कि घोषणा ऐसी होगी या वैसी होगी। यह वो काम हैं, जिसे हम हमेशा से करते आए हैं।